
कोटा गढ़ (Garh Palace) - गौरवशाली दिनों का साक्षी | Kota Garh - A Reminiscent of Kota's Glory
Published at : October 21, 2021
राजस्थान का शहर कोटा अपने कोचिंग स्कूलों के लिए मशहूर है। यहां हर साल देश के विभिन्न हिस्सों से छात्र कोचिंग के लिये आते हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहर के भीतर एक शानदार क़िला (गढ़) भी है...जो शहर के गौरवशाली इतिहास का गवाह है?
यह कोटा गढ़ है, जिसे सिटी पैलेस के रूप में भी जाना जाता है। ये कोटा शहर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अपने शानदार चित्रों और एक संग्रहालय मेंरखीं बेशक़ीमती शाही चीज़ों के लिये ख़ासतौर पर जाना जाता है। पुराने शहर के बीचों बीच 13वीं शताब्दी में बना ये क़िला कभी रियासत का सत्ता केंद्र हुआ करता था। रियासत पर हाड़ा राजपूत महारावों का शासन होता था।
राजस्थान की राजधानी जयपुर से क़रीब 250 कि.मी. दूर, चंबल नदी के तट पर हाड़ा क्षेत्र में स्थित कोटा शहर मध्यकाल में अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से एक प्रमुख क्षेत्र था। चंबल नदी की उपजाऊ ज़मीन की वजह से यह प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध था। यह सामरिक दृष्टि से उदयपुर, जयपुर, गुजरात और मालवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों से घिरा हुआ है। यह गुजरात और दिल्ली के बीच व्यापारिक मार्ग पर भी था।
ऐसा माना जाता है किकोटा का नाम भील सरदार कोटिया के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 13वीं सदी में इस क्षेत्र पर शासन किया था। सन 1264 में बूंदी के राजपूत साम्राज्य के राजकुमार जेट सिंह ने कोटिया को हराकर उनकी हत्या कर दी थी और फिर कोटा गढ़ की नींव रखी थी।
चंबल नदी के पूर्वी तट पर, एक ऊंचे स्थान पर होने के कारण,क़िले से नदी के साथ-साथ शहर पर भी नियंत्रण रखा जाता था।
लेकिन कोटा को महत्व कई सदियों बाद मिला। मुग़ल बादशाह जहांगीर ने सन 1624 में कोटा को बूंदी राज्य से अलग करके,उसे एक स्वतंत्र रियासत घोषित कर दिया और बूंदी के राजकुमार राव माधो सिंह को शासक बना दिया। उसीके बाद ही क़िले को महत्व मिला था । राव माधो सिंह के शासनकाल में कोटा एक ख़ुशहाल राज्य बना और उनके वंशज,सन 1947 तक कोटा पर शासन करते रहे। उसके बाद कोटा भारतीय संघ में शामिल हो गया।
आगे आने वाले सालों में शासकों ने क़िले के विस्तार और मरम्मत पर काम किया, और जो शानदार क़िला आज हम देखते हैं वो इन्हीं की देन है।
क़िले की वास्तुकला मुग़ल और राजपूत वास्तुकला का मिश्रण है। इसमें छतरियों, छज्जे हैं और भीतर शीशे का काम है । क़िले के स्तंभ सुंदर रूपांकनों से सजे हुए हैं।
कोटा गढ़ के मुख्य आकर्षण में से एक है बड़ा महल, जो कभी राजा की रिहाइश हुआ करता था। महल की कुछ बेहतरीन पेंटिंग्ज़ बड़ा महल की दीवारों पर लगी हुई हैं। दरअसल यह महल चित्रकला के कोटा स्कूल से संबंधित अपने सुंदर चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। ये चित्रकला 17वीं सदी में विकसित हुई थी। इन चित्रों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, जीवों, शिकार और जुलूस के दृश्य के साथ ही, भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को दिखाया गया है, जो इस क्षेत्र के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। अपनी रंग योजनाओं, विषयों और भावनाओं के चित्रण के लिए प्रसिद्ध ये पेंटिंग बस देखते ही बनती हैं।
क़िले के भीतर कुछ शानदार महल और मंडप हैं। राजमहल के परिसर में उस समय के दरबारों की एक झलक मिलती है । यहीं पर राजा अपने दरबार लगाया करते थे। यह ख़ूबसूरत चित्रों और शीशे के शानदार काम से सजा हुआ है।
20वीं सदी की शुरुआत में, शाही परिवार ने अपने निवास के लिये, कोटा गढ़ के बजाय,शहर के के अंदर बने उम्मेद भवन महल को चुन लिया। उम्मेद भवन, जिसको सन 1905 के आसपास महाराव उम्मेद सिंह-द्वितीय ने बनवाया था। आज कोटा गढ़ में महाराव माधो सिंह संग्रहालय है, जिसे ज़रूरी देखा जाना चाहिये। इसमें छोटे आकार की कई राजपूत पैंटिंग, तरह तरह के हथियार और शाही परिवार की कई अन्य चीज़ों का एक बड़ा संग्रह है।
किले के भीतर महल और संग्रहालय कोटा के इतिहास के गौरवशाली और शानदारदिनों के गवाहहैं।
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यह कोटा गढ़ है, जिसे सिटी पैलेस के रूप में भी जाना जाता है। ये कोटा शहर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अपने शानदार चित्रों और एक संग्रहालय मेंरखीं बेशक़ीमती शाही चीज़ों के लिये ख़ासतौर पर जाना जाता है। पुराने शहर के बीचों बीच 13वीं शताब्दी में बना ये क़िला कभी रियासत का सत्ता केंद्र हुआ करता था। रियासत पर हाड़ा राजपूत महारावों का शासन होता था।
राजस्थान की राजधानी जयपुर से क़रीब 250 कि.मी. दूर, चंबल नदी के तट पर हाड़ा क्षेत्र में स्थित कोटा शहर मध्यकाल में अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से एक प्रमुख क्षेत्र था। चंबल नदी की उपजाऊ ज़मीन की वजह से यह प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध था। यह सामरिक दृष्टि से उदयपुर, जयपुर, गुजरात और मालवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों से घिरा हुआ है। यह गुजरात और दिल्ली के बीच व्यापारिक मार्ग पर भी था।
ऐसा माना जाता है किकोटा का नाम भील सरदार कोटिया के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 13वीं सदी में इस क्षेत्र पर शासन किया था। सन 1264 में बूंदी के राजपूत साम्राज्य के राजकुमार जेट सिंह ने कोटिया को हराकर उनकी हत्या कर दी थी और फिर कोटा गढ़ की नींव रखी थी।
चंबल नदी के पूर्वी तट पर, एक ऊंचे स्थान पर होने के कारण,क़िले से नदी के साथ-साथ शहर पर भी नियंत्रण रखा जाता था।
लेकिन कोटा को महत्व कई सदियों बाद मिला। मुग़ल बादशाह जहांगीर ने सन 1624 में कोटा को बूंदी राज्य से अलग करके,उसे एक स्वतंत्र रियासत घोषित कर दिया और बूंदी के राजकुमार राव माधो सिंह को शासक बना दिया। उसीके बाद ही क़िले को महत्व मिला था । राव माधो सिंह के शासनकाल में कोटा एक ख़ुशहाल राज्य बना और उनके वंशज,सन 1947 तक कोटा पर शासन करते रहे। उसके बाद कोटा भारतीय संघ में शामिल हो गया।
आगे आने वाले सालों में शासकों ने क़िले के विस्तार और मरम्मत पर काम किया, और जो शानदार क़िला आज हम देखते हैं वो इन्हीं की देन है।
क़िले की वास्तुकला मुग़ल और राजपूत वास्तुकला का मिश्रण है। इसमें छतरियों, छज्जे हैं और भीतर शीशे का काम है । क़िले के स्तंभ सुंदर रूपांकनों से सजे हुए हैं।
कोटा गढ़ के मुख्य आकर्षण में से एक है बड़ा महल, जो कभी राजा की रिहाइश हुआ करता था। महल की कुछ बेहतरीन पेंटिंग्ज़ बड़ा महल की दीवारों पर लगी हुई हैं। दरअसल यह महल चित्रकला के कोटा स्कूल से संबंधित अपने सुंदर चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। ये चित्रकला 17वीं सदी में विकसित हुई थी। इन चित्रों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, जीवों, शिकार और जुलूस के दृश्य के साथ ही, भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को दिखाया गया है, जो इस क्षेत्र के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। अपनी रंग योजनाओं, विषयों और भावनाओं के चित्रण के लिए प्रसिद्ध ये पेंटिंग बस देखते ही बनती हैं।
क़िले के भीतर कुछ शानदार महल और मंडप हैं। राजमहल के परिसर में उस समय के दरबारों की एक झलक मिलती है । यहीं पर राजा अपने दरबार लगाया करते थे। यह ख़ूबसूरत चित्रों और शीशे के शानदार काम से सजा हुआ है।
20वीं सदी की शुरुआत में, शाही परिवार ने अपने निवास के लिये, कोटा गढ़ के बजाय,शहर के के अंदर बने उम्मेद भवन महल को चुन लिया। उम्मेद भवन, जिसको सन 1905 के आसपास महाराव उम्मेद सिंह-द्वितीय ने बनवाया था। आज कोटा गढ़ में महाराव माधो सिंह संग्रहालय है, जिसे ज़रूरी देखा जाना चाहिये। इसमें छोटे आकार की कई राजपूत पैंटिंग, तरह तरह के हथियार और शाही परिवार की कई अन्य चीज़ों का एक बड़ा संग्रह है।
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